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महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप पर विद्यार्थियों और बच्चों के लिए निबंध

महाराणा प्रताप पर विद्यार्थियों और बच्चों के लिए निबंध – 2

राजस्थान के वीर राजपूत भारत भूमि पर अपना सब कुछ न्योछावर करने में सबसे आगे थे। इनकी आन बान और शान की गाथायें जग प्रसिद्ध हैं। भारत माता को अपने वीर राजपूत सपूतों पर गर्व है। महाराणा प्रताप भी इन वीर राजपूतों के वंशज हैं।

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ई. में चितौड़ के एक राजघराने में हुआ था। महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह ने अकबर की विशाल सेना से भयभीत होकर उदयपुर को अपनी राजधानी बनाया। 1572 में अपने पिता की मृत्यु के बाद महारराणा प्रताप उदयपुर के राजा बने।

महाराणा प्रताप अपने दादा राणा सांगा के समान एक अच्छे योद्धा थे। उनके पिता द्वारा, अकबर से डरकर चितौड़ छोड़ना उनको बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था। वह चितौड़ को अकबर के चंगुल से छुड़वाना चाहते थे। अतः उन्होंने प्रतिज्ञा की कि ‘वह जब तक चितौड़ वापस नहीं ले लेंगे तब तक से भूमि पर सोयेंगे, पत्तों पर भोजन करेंगे व अपनी मूछों पर ताव नहीं देंगे।’

अकबर एक नीतिकुशल सम्राट था। उसने बहुत से राज्यों को जीता था। महाराणा प्रताप पर विजय हासिल करने के लिये उसने अपने सेनापति को एक बड़ी सेना देकर भेजा। सन् 1576 ई. में हुआ हल्दी घाटी का युद्ध बहुत प्रसिद्ध है। महाराणा प्रताप ने मुट्ठी पर सैनिकों के साथ अकबर की विशाल सेना का मुकाबला किया, किन्तु अंत में अपने प्रिय घोड़े चेतक के साथ वह जंगलों में भाग गये।

जंगल में अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुये वह अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के लिये तड़पते रहे। भामाशाह नामक एक सेठ ने अपनी पूँजी देकर उन्हें सेना गठित करने में सहायता की। भामाशाह की दी हुई पूँजी से महाराणा प्रताप ने सेना गठित की और शीघ्र ही कई प्रदेशों पर विजय प्राप्त की।

किन्तु मृत्यु शैया तक पहुँचते समय भी वह चितौड़ को स्वतंत्र नहीं करा पाने के दुख से दुखी रहे।

वह भारत माँ के सच्चे सपूत थे। उनकी वीरता और देशभक्ति के कारण आज भी उन्हें स्मरण किया जाता है।

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