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Hindi Grammar

वर्णमाला: Alphabets – Hindi Grammar for Students and Children

अनुनासिक, निरनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग

अनुनासिक, निरनुनासिक, अनुस्वार और विसर्ग- हिन्दी में स्वरों का उच्चारण अनुनासिक और निरनुनासिक होता हैं। अनुस्वार और विर्सग व्यंजन हैं, जो स्वर के बाद, स्वर से स्वतंत्र आते हैं। इनके संकेत चिह्न इस प्रकार हैं।

अनुनासिक (ँ)– ऐसे स्वरों का उच्चारण नाक और मुँह से होता है और उच्चारण में लघुता रहती है। जैसे – गाँव, दाँत, आँगन, साँचा इत्यादि।

अनुस्वार ( ं)– यह स्वर के बाद आनेवाला व्यंजन है, जिसकी ध्वनि नाक से निकलती है। जैसे – अंगूर, अंगद, कंकन।

निरनुनासिक – केवल मुँह से बोले जानेवाला सस्वर वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं। जैसे – इधर, उधर, आप, अपना, घर इत्यादि।

विसर्ग ( ः)– अनुस्वार की तरह विसर्ग भी स्वर के बाद आता है। यह व्यंजन है और इसका उच्चारण ‘ह’ की तरह होता है। संस्कृत में इसका काफी व्यवहार है। हिन्दी में अब इसका अभाव होता जा रहा है; किन्तु तत्सम शब्दों के प्रयोग में इसका आज भी उपयोग होता है। जैसे – मनःकामना, पयःपान, अतः, स्वतः, दुःख इत्यादि।

टिप्पणी– अनुस्वार और विसर्ग न तो स्वर हैं, न व्यंजन; किन्तु ये स्वरों के सहारे चलते हैं। स्वर और व्यंजन दोनों में इनका उपयोग होता है।
जैसे – अंगद, रंग। इस सम्बन्ध में आचार्य किशोरीदास वाजपेयी का कथन है कि “ये स्वर नहीं हैं और व्यंजनों की तरह ये स्वरों के
पूर्व नहीं पश्र्चात आते हैं,” इसलिए व्यंजन नहीं। इसलिए इन दोनों ध्वनियों को ‘अयोगवाह’ कहते हैं।” अयोगवाह का अर्थ है – योग न होने पर भी जो साथ रहे।

अनुस्वार और अनुनासिक में अन्तर

अनुनासिक के उच्चारण में नाक से बहुत कम साँस निकलती है और मुँह से अधिक, जैसे – आँसू, आँत, गाँव, चिड़ियाँ इत्यादि। पर अनुस्वार के उच्चारण में नाक से अधिक साँस निकलती है और मुख से कम, जैसे – अंक, अंश, पंच, अंग इत्यादि।

अनुनासिक स्वर की विशेषता है, अर्थात अनुनासिक स्वरों पर चन्द्रबिन्दु लगता है। लेकिन, अनुस्वार एक व्यंजन ध्वनि है। अनुस्वार की ध्वनि प्रकट करने के लिए वर्ण पर बिन्दु लगाया जाता है। तत्सम शब्दों में अनुस्वार लगता है और उनके तद्भव रूपों में चन्द्रबिन्दु लगता है; जैसे – अंगुष्ठ से अँगूठा, दन्त से दाँत, अन्त्र से आँत।

व्यंजन (Consonant)

(2) व्यंजन (Consonant): जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यंजन कहते है।

दूसरे शब्दो में- व्यंजन उन वर्णों को कहते हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है। जैसे – क, ख, ग, च, छ, त, थ, द, भ, म इत्यादि।

‘क’ से विसर्ग ( : ) तक सभी वर्ण व्यंजन हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में ‘अ’ की ध्वनि छिपी रहती है। ‘अ’ के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं। जैसे – ख्+अ=ख, प्+अ =प। व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में, बाधित होती है। स्वरवर्ण स्वतंत्र और व्यंजनवर्ण स्वर पर आश्रित है। हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या ३३ है।

व्यंजनों के प्रकार

व्यंजनों तीन प्रकार के होते है –

(1) स्पर्श व्यंजन
(2) अन्तःस्थ व्यंजन
(3) उष्म व्यंजन

(1) स्पर्श व्यंजन: स्पर्श का अर्थ होता है – छूना। जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुँह के किसी भाग जैसे – कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, अथवा होठ का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।

दूसरे शब्दो में – ये कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं। इसी से इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। इन्हें हम ‘वर्गीय व्यंजन’ भी कहते है; क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए वर्गों में विभक्त हैं।

ये 25 व्यंजन होते है

(1) कवर्ग – क ख ग घ ङ ये कण्ठ का स्पर्श करते है।

(2) चवर्ग – च छ ज झ ञ ये तालु का स्पर्श करते है।

(3) टवर्ग – ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) ये मूर्धा का स्पर्श करते है।

(4) तवर्ग – त थ द ध न ये दाँतो का स्पर्श करते है।

(5) पवर्ग – प फ ब भ म ये होठों का स्पर्श करते है।

(2) अन्तःस्थ व्यंजन: ‘अन्तः’ का अर्थ होता है – ‘भीतर’। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है।

अन्तः = मध्य / बीच, स्थ = स्थित। इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का-सा होता है। उच्चारण के समय जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श नहीं करती।

ये व्यंजन चार होते है – य, र, ल, व। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता है, किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अन्तःस्थ व्यंजन ‘अर्द्धस्वर’ कहलाते हैं।

(3) उष्म व्यंजन: उष्म का अर्थ होता है – गर्म। जिन वर्णो के उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है।

ऊष्म = गर्म। इन व्यंजनों के उच्चारण के समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊष्मा पैदा करती है यानी उच्चारण के समय मुख से गर्म हवा निकलती है।

उष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ या घर्षण से उत्पत्र उष्म वायु से होता हैं। ये भी चार व्यंजन होते है – श, ष, स, ह।

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