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तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र: 10th CBSE Hindi Sparsh Ch 13

तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र 10 Class Hindi Ch 13 [Page 3]

प्रश्न: दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।

उत्तर: ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म गहरी संवेदनात्मक तथा भावनात्मक थी। उसे अच्छी रुचियों वाले संस्कारी मन और कलात्मक लोग ही समझ-सराह सकते थे। कवि शैलेंद्र की फ़िल्म निर्माण के पीछे धन और यश प्राप्त करने की अभिलाषा नहीं थी। वे इस फ़िल्म के माध्यम से अपने भीतर के कलाकार को संतुष्ट करना चाहते थे। इस फ़िल्म को बनाने के पीछे शैलेंद्र की जो भावना थी उसे केवल धन अर्जित करने की इच्छा करने वाले व्यक्ति नहीं समझ सकते थे। इस फिल्म की गहरी संवेदना उनकी समझ और सोच से ऊपर की बात है।

प्रश्न: उनके गीत भाव-प्रवण थे – दुरूह नहीं।

उत्तर: इसका अर्थ है कि शैलेंद्र के द्वारा लिखे गीत भावनाओं से ओत-प्रोत थे, उनमें गहराई थी, उनके गीत जन सामान्य के लिए लिखे गए गीत थे तथा गीतों की भाषा सहज, सरल थी, क्लिष्ट नहीं थी, तभी तो आज भी इनके द्वारा लिखे गए गीत गुनगुनाए जाते हैं। ऐसा लगता है, मानों हृदय को छूकर उसके अवसाद को दूर करते हैं।

प्रश्न: पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए- चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना

उत्तर:

मुहावरा

चेहरा मुरझाना
चक्कर खा जाना
दो से चार बनाना
आँखों से बोलना

वाक्य प्रयोग

आतंकियों ने जैसे ही अपने एरिया कमांडर की मौत की बात सुनी उनके चेहरे मुरझा गए।
क्लर्क के घर एक करोड़ की नकदी पाकर सी०बी०आई० अधिकारी भी चक्कर खा गए।
आई०पी०एल० दो से चार बनाने का खेल सिद्ध हो रहा है।
मीना कुमारी का अभिनय देखकर लगता था कि वे आँखों से बोल रही हैं।

प्रश्न: निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए:

  1. शिद्दत – …….
  2. याराना – ……….
  3. बमुश्किल – ………
  4. खालिस – ………..
  5. नावाकिफ़ – ……..
  6. यकीन – …………
  7. हावी – …………
  8. रेशा – ……….

उत्तर:

  1. शिद्दत – श्रद्धा
  2. याराना – मित्रता
  3. बमुश्किल – कठिनाई से
  4. खालिस – शुद्ध
  5. नावाकिफ़ – अनभिज्ञ
  6. यकीन – विश्वास
  7. हावी – आक्रामक
  8. रेशा – पतले-पतले धागे

प्रश्न: निम्नलिखित संधि विच्छेद कीजिए:

  1. चित्रांकन – ……… + ………
  2. सर्वोत्कृष्ट – ………. + ………..
  3. चर्मोत्कर्ष – ………… + ………….
  4. रूपांतरण – ……….. + ………….
  5. घनानंद – ………… + …………..

उत्तर:

  1. चित्रांकन – चित्र + अंकन
  2. सर्वोत्कृष्ट – सर्व + उत्कर्ष
  3. चर्मोत्कर्ष – चर्म + उत्कर्ष
  4. रूपांतरण – रूप + अंतरण
  5. घनानंद – घन + आनंद

प्रश्न: निम्नलिखित का समास विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए:

  1. कला-मर्मज्ञ
  2. लोकप्रिय
  3. राष्ट्रपति

उत्तर:

विग्रह समास का नाम
कला-मर्मज्ञ  कला का मर्मज्ञ संबंध तत्पुरुष समास
लोकप्रिय लोक में प्रिय अधिकरण तत्पुरुष समास
राष्ट्रपति राष्ट्र का पति संबंध तत्पुरुष समास

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर:

प्रश्न: संगम की सफलता से उत्साहित राजकपूर ने कौन सा कदम उठाया?

उत्तर: राजकपूर को संगम फ़िल्म से अद्भुत सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में थीं – अजंता, मेरा नाम जोकर, मैं और मेरा दोस्त, सत्यम् शिवम् सुंदरम्।

प्रश्न: राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ अपनी मित्रता? निर्वाह कैसे किया?

उत्तर: राजकपूर ने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में पूरी तन्मयता से काम किया। इस काम के बदले उन्होंने किसी प्रकार के पारिश्रमिक की अपेक्षा नहीं की। उन्होंने मात्र एक रुपया एडवांस लेकर काम किया और मित्रता का निर्वाह किया।

प्रश्न: एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सा – युवा भी चक्कर क्यों खा जाते हैं?

उत्तर: एक निर्माता जब फ़िल्म बनाता है तो उसका लक्ष्य होता है फ़िल्म अधिकाधिक लोगों को पसंद आए और लोग उसे बार बार देखें, तभी उसे अच्छी आय होगी। इसके लिए वे हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं फिर भी फ़िल्म नहीं चलती और वे चक्कर खा जाते हैं।

प्रश्न: राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ किस तरह याराना मस्ती की ?

उत्तर: गीतकार शैलेंद्र जब अपने मित्र राजकपूर के पास फ़िल्म में काम करने का अनुरोध करने गए तो राजकपूर ने हाँ कह दिया, परंतु साथ ही यह भी कह दिया कि ‘निकालो मेरा पूरा एडवांस’। फिर उन्होंने हँसते हुए एक रुपया एडवांस माँगा। एडवांस माँग कर राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ याराना मस्ती की।

प्रश्न: शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए दवा किया?

उत्तर: शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे श्रेष्ठ कलाकारों को लिया। इसके अलावा उन्होंने फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की मार्मिक कृति ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ की कहानी को पटकथा बनाकर सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा।

प्रश्न: ‘तीसरी कसम’ जैसी फ़िल्म बनाने के पीछे शैलेंद्र की मंशा क्या थी?

उत्तर: शैलेंद्र कवि हृदय रखने वाले गीतकार थे। तीसरी कसम बनाने के पीछे उनकी मंशा यश या धनलिप्सा न थी। आत्म संतुष्टि के लिए ही उन्होंने फ़िल्म बनाई।

प्रश्न: शैलेंद्र द्वारा बनाई गई फ़िल्म चल रहीं, इसके कारण क्या थे?

उत्तर: तीसरी कसम संवेदनापूर्ण भाव-प्रणव फ़िल्म थी। संवेदना और भावों की यह समझ पैसा कमाने वालों की समझ से बाहर होती है। ऐसे लोगों का उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना होता है। तीसरी कसम फ़िल्म में रची-बसी करुणा अनुभूति की। चीज़ थी। ऐसी फ़िल्म के खरीददार और वितरक कम मिलने से यह फ़िल्म चले न सकी।

प्रश्न: ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी नयाँ’ इस पंक्ति के रेखांकित अंश पर किसे आपत्ति थी और क्यों ?

उत्तर: ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पंक्ति के दसों दिशाओं पर संगीतकार शंकर जयकिशन को आपत्ति थी। उनका मानना था कि जन साधारण तो चार दिशाएँ ही जानता-समझता है, दस दिशाएँ नहीं। इसका असर फ़िल्म और गीत की लोकप्रियता पर पड़ने की आशंका से उन्होंने ऐसा किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर:

प्रश्न: ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: जिस समय फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के लिए राजकपूर ने काम करने के लिए हामी भरी वे अभिनय के लिए प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हो गए थे। इस फ़िल्म में राजकपूर ने ‘हीरामन’ नामक देहाती गाड़ीवान की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय इतना सशक्त था कि हीरामन में कहीं भी राजकपूर नज़र नहीं आए। इसी प्रकार छींट की सस्ती साड़ी में लिपटी हीराबाई का किरदार निभा रही वहीदा रहमान का अभिनय भी लाजवाब था जो हीरामन की बातों का जवाब जुबान से । नहीं आँखों से देकर वह सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की जिसे शब्द नहीं कह सकते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था।

प्रश्न: ‘हिंदी फ़िल्म जगत में एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म बनाना कठिन और जोखिम का काम है।’ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: हिंदी फ़िल्म जगत की एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म है तीसरी कसम, जिसका निर्माण प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र ने किया। इस फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे प्रसिद्ध सितारों का सशक्त अभिनय था। अपने जमाने के मशहूर संगीतकार शंकर जयकिशन का संगीत था जिनकी लोकप्रियता उस समय सातवें आसमान पर थी। फ़िल्म के प्रदर्शन के पहले ही इसके सभी गीत लोकप्रिय हो चुके थे। इसके बाद भी इस महान फ़िल्म को कोई न तो खरीदने वाला था और न इसके वितरक मिले। यह फ़िल्म कब आई और कब चली गई मालूम ही न पड़ा, इसलिए ऐसी फ़िल्में बनाना जोखिमपूर्ण काम है।

प्रश्न: ‘राजकपूर जिन्हें समीक्षक और कलामर्मज्ञ आँखों से बात करने वाला मानते हैं’ के आधार पर राजकपूर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर: राजकपूर हिंदी फ़िल्म जगत के सशक्त अभिनेता थे। अभिनय की दुनिया में आने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे उत्तरोत्तर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए और अपने अभिनय से नित नई ऊचाईयाँ छूते रहे। संगम फ़िल्म की अद्भुत सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में सफल भी रही। इसी बीच राजकपूर अभिनीत फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के बाद उन्हें एशिया के शोमैन के रूप में जाना जाने लगा। इनका अपना व्यक्तित्व लोगों के लिए किंवदंती बन चुका था। वे आँखों से बात करने वाले कलाकार जो हर भूमिका में जान फेंक देते थे। वे अपने रोल में इतना खो जाते थे कि उनमें राजकपूर कहीं नज़र नहीं आता था। वे सच्चे इंसान और मित्र भी थे, जिन्होंने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म में मात्र एक रुपया पारिश्रमिक लेकर काम किया और मित्रता का आदर्श प्रस्तुत किया।

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