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अपठित गद्यांश और पद्यांश Hindi Unseen Passages III

अपठित गद्यांश और पद्यांश Hindi Unseen Passages III [07]

छोड़-छाड़ कर द्वेष-भाव को,
मीत-प्रीत की रीत निभाओ।
दिवाली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।

दूर कर सको तो कर डालो,
मन का गहन अंधेरा।
निंदा-नफरत बुरी आदतों,
से तुम छुटकारा पाओ।

दीपावली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।
खूब मिठाई खाओ छक कर,
पर पर्यावरण का रखना ध्यान।
बम कहीं न फोड़े कान,

वायु प्रदूषण, धुएँ से बचना,
रोशनी से घर द्वार को भरना।
दीपावली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।

हर उपवन के फूल तुम्हारे,
हर सुख, हर खुशहाली पाओ।
दीपावली के शुभ अवसर पर,
मन से मन का दीप जलाओ।

[1] प्रस्तुत कविता के आधार पर निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

  1. कवि कैसे भाव को छोड़ने की बात कर रहा है?
  2. प्रीत की रीत निभाने के लिए कवि किस्से कह रहा है?
  3. कविता में किन बुराइयों से छुटकारा पाने के लिए कहा गया है?
  4. कविता में कौन से प्रदूषण के बारे में बताया गया है? किन्हीं अन्य दो प्रदूषणों के नाम लिखें।

[2] आपकी राय में दीपावली के अवसर पर बम फोड़ना कहाँ तक उचित है? (मूल्यपरक प्रश्न)

[3] प्रस्तुत कविता में नफरत और निंदा जैसी बुराइयों को छोड़ने के लिए कहा जा रहा है। आप अपनी किस बुराई को छोड़ना चाहते हैं और क्यों?

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