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भारत की बढ़ती जनसंख्या / बढ़ती आबादी: देश की बर्बादी

भारत की बढ़ती जनसंख्या / बढ़ती आबादी: देश की बर्बादी

भारत की बढ़ती जनसंख्या: विश्व का इतिहास जनसंख्या वृद्धि का इतिहास है। प्रो. सांडर्स का मत है कि विश्व की जनसंख्या में प्रति वर्ष एक प्रतिशत की वृद्धि हो रही है और यदि इसी गति से वृद्धि होती रही तो एक दिन इस पृथ्वी पर रहने के लिए तो क्या खड़ा होने के लिए भी जगह न रहेगी। सौ वर्ष पहले जितने लोग इस पृथ्वी पर रहते थे आज उसे दुगुने हो गये हैं। एशिया के देशों में चीन और भारत में सबसे अधिक जनसंख्या बढ़ रही है। भारत में प्रतिवर्ष एक करोड़ नए बच्चे जन्म लेते हैं। यहाँ मृत्यु दर घटी है, औसत आयु बढ़ गई है, पर जन्म-दर कम नहीं हो रही है। परिणाम यह है कि यहाँ प्रति वर्ष नए दस लाख व्यक्तियों के लिए खाने, पीने, आवास का प्रबन्ध करना पड़ता है।

हिंदी निबंध: भारत की बढ़ती जनसंख्या / बढ़ती आबादी: देश की बर्बादी

आंकड़े बताते हैं कि 1955 में भारत की जनसंख्या 92 करोड़ थी और 2000 में वह एक अरब को पार कर गयी है। विश्व की कुल जनसंख्या का पद्रह प्रतिशत भारत में रहता है जबकि यहाँ का क्षेत्रफल विश्व के कुल क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत है। परिणाम यह है की जमीन पर भार बढ़ता जा रहा है और संसाधनों की तुलना में माँग अधिक है। अतः मनुष्य की न्यूनतम आवश्यकताएँ – रोटी, कपड़ा, मकान, यातायात के साधन पूरी नहीं हो रही हैं। भूख, कुपोषण अशिक्षा, रोग, महँगाई बढ़ रहे हैं, जीवन कष्टमय होता जा रहा है, जीवन-स्तर निरन्तर गिर रहा है, गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहनेवालों की संख्या बढ़ रही है। इससे देश के विकास-कार्य में बाधा पहुंचेगी और  विकास के जो लाभ होंगे वे जन- जन तक नहीं पहुँच पायेंगे।

अभाव और बेरोजगारी आसामाजिक तत्व पैदा करते हैं और असामाजिक तत्व अनैतिक, कानून-विरोधी कार्य-डाके, चोरी, फिरौती, लूटपाट, कालाबाजारी, तस्करी करते हैं। जीवन के उदात्त जीवन-मूल्यों का ह्रास होता है। संस्कृत में उक्ति है “बुभुक्षितः किं न करोति पापम्” भूखा क्या नहीं करता, भूखे भजन न होइ गोपाला। व्यापारी कालाबाजारी करते हैं, जमाखोरी करते हैं, खाद्य-पदार्थों तथा जीवनरक्षक औषधियों में मिलावट होती है। रिश्वत का बाजार गर्म होता है। लोग बीमार पड़ते हैं, असमय ही संसार से कूच कर जाते हैं।

भारत की बढ़ती जनसंख्या से देश के नागरिक ही कष्ट नहीं पाते, देश की प्रगति और विकास की गति पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। हम देख रहे हैं कि वैज्ञानिकों की प्रतिभा तथा परिश्रम से, सरकार की योजनाओं से प्रतिवर्ष खाद्यान्न की मात्रा बढ़ रही है, नये-नये विद्यालय, रोगियों का उपचार नहीं हो पाता, बसों में इतनी भीड़ होती है कि या तो घंटो इंतजार करना होता है और हम समय पर अपने कार्यालय नहीं पहुँच पाते या धक्कामुक्की में घायल होकर खटिया गोड़ते हैं। सरकार के सारे प्रयत्न, सारी योजनाएँ और उनसे प्राप्त सुविधाएँ ‘ऊँट के मुँह में जीरा‘ सिद्ध हो रही हैं। देश की खुशहाली, आर्थिक प्रगति और विकास आबादी रूपी सुरसा राक्षसी निगल जाती है। इस स्थिति को देखकर पं. नेहरु के शब्द याद आते हैं, “यदि जनसंख्या बढती रही तो पंचवर्षीय योजनाओं का कोई अर्थ नहीं है… जब तक  बढती हुई जनसंख्या रोकी नहीं जाएगी, तब तक देश की उन्नति प्रयत्नों का कोई लाभ नहीं होगी।”

भारत में जनसंख्या वृधि के अनेक कारण हैं। जनसंख्या ज्यमिति गुणन प्रणाली के अनुसार बढती है 2 × 2 = 4, 4 × 4 = 16, 16 × 16 = 256। यह प्राकृतिक नियम है और इस पर न किसी का अंकुश हो सकता है। दूसरा कारण है कि चिकित्सा-विज्ञान ने ऐसी औषधियों और शल्यचिकित्सा जैसी चिकित्सा पद्धतियों का आविष्कार कर लिया है कि मृत्यु-दर कम हो गयी है, आयु सीमा बढ़ गई है। इससे जनसंख्या तो बढ़ी है, पर यह शुभ ही है। अतः इसका स्वागत होना चाहिए न कि तिरस्कार।

भारत में अधिकांश व्यक्ति विशेतः गाँवों में गरीब कहे जाते जानेवाले तथा कुछ को छोड़कर अधिकांश स्त्रियाँ अर्धशिक्षित, परम्परागत मान्यताओं, अंधविश्वासों, रुढियों के जाल में फसे हैं। अतः वे सन्तान को ईश्वर की देन मानते हैं, गर्भ-निरोधक उपायों को ईश्वर के विधान में हस्तक्षेप मानकर पाप समझते हैं और उन उपायों को नहीं अपनाते। उनका गोस्वामी तुलसीदास के इस कथन में विश्वास है-हानी-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ। आपने रेडियों पर एक व्यक्ति को डाक्टर से कहते सुना होगा – डाक्टर साहब, सन्तान तो ईश्वर की देन है। भारत के बहुत-से लोग आज भी इसी मानसिकता में डूबे हुए हैं, गर्भ-निरोधक उपायों-कन्डोम, माला- डी जैसी गोलियों और कॉपर-टी का प्रयोग न कर बुढ़ापे तक सन्तान सन्तान पैदा करते रहते हैं और जनसंख्या वृद्धि होती है।

हिन्दू लोगों का विश्वास है कि पिण्ड-दान बिना मोक्ष नहीं मिल सकता, नरक की यातनाओं से बचने के लिए पिण्ड-दान आवश्यक है और पिण्ड-दान कर सकता है केवल बेटा। अतः एक बेटा तो होना ही चाहिए। यह बात भी रेडियो पर आपने गर्भ निरोध का परामर्श देनेवाले डाक्टर और एक नागरिक के बीच वार्तालाप में सुनी होगी, ‘डाक्टर साहब, एक बेटा तो होना ही चाहिए।’ बेटे का जन्म की आशा लगाये उसकी प्रतीक्षा करते-करते छः बेटीयाँ हो जाती हैं।

इस्लाम धर्म में चार चार पत्नियाँ रखने की अनुमति है और मुसलान पुरुष अपनी हवस के कारण चार-चार पत्नियाँ रखता है। यदि एक पत्नी से चार बच्चे होते हैं तो चार पत्नीयों से सोलह बच्चे होंगे और परिणाम होगा अनावश्यक और हानिकारक जनसंख्या वृद्धि। मुल्ले -मौलवी भी परिवार-नियोजन को धर्म-विरुद्ध बताते हैं।

जनसंख्या-वृद्धि का एक कारण राजनैतिक स्वार्थ भी है। भारत जनतंत्र है। यहाँ प्रति पाँच वर्ष बाद चुनाव होते हैं और प्रत्येक व्यस्क नागरिक को मत देने और अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिअकार है। चुना गया नागरिक ही विधायक या सांसद बनकर सत्ता की कुर्सी पर बैठता है। जिस जाती, वर्ग, सम्प्रदाय के मतदाताओं की संख्या अधिक होगी, वही चुनाव में जीतेगा, सत्ता की कुर्सी पर बैठेगा या फिर अपने वोटों के बल पर अनुचित सुविधाएँ, रियासतें मनवा सकेगा। अतः राजनेता अपने-अपने वर्ग, सम्प्रदाय, जाती के लोगों को उकसाते हैं कि वे अधिक से अधिक सन्तान पैदा करें।

जन-संख्या वृधि का एक कारण यह भी है कि गरीब लोगों के पास मनोरंजन का साधन एक ही है-स्त्री-संसर्ग। अतः गरीब लोगों के घरों में अधिक बच्चे पैदा होते हैं।

आज भी देश के कुछ भागों में बल विवाह की प्रथा विधमान है। व्यस्क होने से पूर्व, स्म्यक् बौद्धिक और शारीरक विकास होने से पूर्व ही किशोर-किशोरी  विवाह कर दिया जाता है। परिणाम होता है संतानोत्पत्ति के काल में वृद्धि। वे सोलह वर्ष से पचास वर्ष तक बच्चे पैदा करते रहते हैं और पृथ्वी पर भार बढ़ाते हैं।

भारत की बढ़ती जनसंख्या की समस्या के समाधान के उपाय हैं – समझा-बुझाकर नागरिकों को, विशेषतः गरीबों, गाँवों में रहनेवालों, अशिक्षितों तथा अंधविश्वासों से घिरे लोगों को गर्भ-निरोधक उपाय अपनाने के लिए गर्भ-निरोधक गोलियाँ तथा कॉपर टी आदि, गर्भ निरोधक उपकरणों का बिना दाम लिए मुफ्त वितरण।

इसके लिए सरकार को भी कुछ कदम उठाने होंगे। ऐसे कानून बनने चाहिएँ जिनसे दो बच्चों से अधिक ब्च्चोवाले माता-पिता को अधिकारों एवं सुविधाओं से वंचित करना जैसे चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित करना, राशन की दुकानों से कम दामों पर खाद्य पदार्थ, मिट्टी का तेल मिलने सुविधा न देना। ऐसे लोगों को सरकारी-अर्ध सरकारी प्रतिष्ठानों में नियुक्त न किया जाए और जो पहले से कार्य कर रहे हैं उनकी पदोन्नति न की जाये। ऐसे लोगों को परमिट, लाइसेंस न दिया जाये।

डाक्टरों तथा अस्पतालों को आदेश दिया जाये कि दो बच्चों के बाद माता-पिता की नसबंदी कर दें। दो बच्चों के बाद नसबन्दी का प्रमाण-पत्र अनिवार्य कर दिया जाये। समान नागरिक संहिता के अन्तर्गत मुसलमानों पर भी केवल एक स्त्री के साथ विवाह करने का नियम बनाया जाये। विवाह की आयु बढ़ाने का कानून बनाया जाए और उस नियम को तोड़ने-वालों को कठोर दण्ड दिया जाए। विवाह के लिए लड़के की आयु 25 वर्ष और लड़की की आयु 22 वर्ष कर दी जाए। ऐसे कानून-नियम बनाये ही न जाएँ, उनका सख्ती से पालन भी हो। इन उपायों को अपनाने से निश्चय ही यह समस्या और उसके कारण हो रही बरबादी रुक जाएगी।

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