ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो भारत में सच्चे अर्थों में राष्ट्रीयता की भावना का जन्म अंग्रेजों के आगमन के बाद तथा उनके औपनिवेशिक साम्राज्यवादी कुशासन के विरुद्ध संघर्ष कर देश को स्वतंत्र बनाने की उत्कट कामना और फलस्वरूप स्वतंत्रता-आन्दोलन के साथ हुआ। उससे पूर्व देश को एकसूत्रता में जोडनेवाली कड़ियाँ प्रायः धर्म और संस्कृति थीं। इतिहास साक्षी है कि भारत और भारत के नीवासी केवल अपने छोटे से प्रदेश को ही अपना देश समझते थे। राजस्थान के छोटे-छोटे राज्य साधारण सी बातों पर परस्पर युद्ध करते रहते थे: मराठों का मुगलों से संघर्ष हिन्दुओं की चोटी और बेटी की रक्षा के लिए था।
आज कास युग प्रतिस्प्रधा का युग है। जो देश औद्योगिक और आर्थिक दृष्टि से जितना अधिक सम्पन्न और समृद्ध है, वह उतना ही अधिक विकसित और गौरवान्वित माना जाता है। आज अमेरिका विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली देश माना जाता है क्योंकि वह विज्ञान, प्रौद्योगिकी, औद्योगिक क्षेत्र, युद्ध की मारक क्षमता में सर्वाधिक शक्तिसम्पन्न है। इस अभूतपूर्व उन्नति का कारण क्या है – शांति, परस्पर सौहार्द, देश को सर्वोपरी मानकर अपने शुद्ध स्वार्थों का त्याग, मत-भेद होते हुए भी राष्ट्र के हितों के लिए अपने को उत्सर्ग करने की भावना, राष्ट्र को सर्वोपरी मानना: व्यक्तिगत स्वार्थ, धर्म राजनितिक विचारों में भेद-भाव भुलाकर देश के लिए सर्वस्व बलिदान करने की भावना। यही है राष्ट्रीयता या राष्ट्र-प्रेम की भावना। शक्ति के बिना प्रगति नहीं हो सकती, विकास नहीं हो सकता और शांति लिए आवश्यक है भावनात्मक एकता अर्थात् राष्ट्रप्रेम की भावना।
जहाँ तक वर्तमान भारत का सम्बन्ध है आजादी के पचपन वर्ष बाद भी हममें सच्ची राष्ट्रीय भावना का अभाव है। जो एकजुटता, दृढ संकल्पशक्ति, त्याग और बलिदान की भावना देश के लिए मर-मिटने का उदात्त विचार स्वतंत्रता-संग्राम के दिनों में था, उसका लोप हो गया है।भले ही हम विवधता में एकता का नारा लगाते रहें, सर्वधर्म समभाव की दुहाई देते रहें, पर हमारे देश, हमारी मातृभूमि, हमारे राष्ट्र पर संकट के बादल घहरा रहें हैं। एक हमारे पड़ोसी देश विशेषतः पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों से, भारत के मुसलमानों का धर्म, उनकी संस्कृति, उनका अतित्व खतरे में है का मिथ्या प्रचार कर, यहाँ के मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर देश को खंडित, देश की आर्थिक औद्योगिक प्रगति को अस्थिर बना कर भारत को दुर्बल बनाना चाहता है, वहाँ दूसरी ओर हमारे स्वार्थी, संकीर्ण-संकुचित दृष्टि वाले राजनेता और राजनितिक दल राजनितिक के अखाड़े में विजय पाने के लिए कभी भाषा, कभी प्रदेश, कभी धर्म, कभी सम्प्रदाय के नाम पर परस्पर फूट के विषवृक्ष को सींचते हैं, उसे पल्लवित-पुष्पित करने का कोई अवसर नहीं खोते। अतः देश में अशांति है, अराजकता है, देश के निर्माण एवं विकास के लिए जैसा शांति और सौहार्द का वातावरण चाहिए वह नहीं है। यदि हम चाहते हैं कि सन् 2020 तक भारत विकासशील देश बन जाये, विश्व के अग्रणी देशों में उसकी गणना हो, तो हमें एकता के दृढ सूत्र में बंधना होगा। हमारे हृदय में राष्ट्रीयता की सच्ची भावना पैदा होने पर ही हम एक शक्तिशाली राष्ट्र बन सकेंगे।