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Subhas Chandra Bose

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर हिंदी निबंध

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस निबंध [500+ Words]

देश को स्वतंत्र करने में जिन महान नेताओं ने विशेष योगदान दिया, उनमें सुभाषचन्द्र बोस का नाम चिर स्मरणीय है। सुभाषचन्द्र बोस के इस नारे से उत्साहित होकर, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा” हजारों देशवासी स्वतन्त्रता संघर्ष में कूद पड़े थे। वे कहा करते थे, “मैं न रहूं आजाद रहे हिन्दुस्तान मेरा” और सचमुच हिन्दुस्तान तो आजाद हो गया पर वे आज तक नहीं आए।

सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ। इनके पिता जानकीदास बोस अपने समय के प्रसिद्ध वकील थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा कटक में ही हुई। सन् 1913 में इन्होंने मैट्रिक पास की। इसके पश्चात् उच्च शिक्षा के लिए ये कलकत्ता चले गए। वहाँ इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया और प्रथम श्रेणी में बी.ए. की परीक्षा पास की। इसके पश्चात वे इंगलैण्ड चले गए और आई.सी.एस. की परीक्षा पास की। परीक्षा पास करते ही उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई परन्तु देश की परतन्त्रता और भूखे-नंगे भारत ने इन्हें सरकारी सेवा से विमुख कर दिया। बंगाल के प्रसिद्ध देशभक्त नेता चितरंजन दास के नेतृत्व में ये स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। यह प्रारम्भ से ही गरम दल के नेता थे। विद्यार्थी काल में ही उन्होंने एक बार भारतीयों का अपमान करने के कारण अपने प्रोफेसर के मुँह पर तमाचा मार दिया था। गरम दल के नेता होते हुए भी वे गांधी जी का बड़ा सम्मान करते थे। उन्होंने गांधी जी के साथ 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ और 1929 में ‘नमक आंदोलन’ में भाग लिया। जब चितरंजन दास गुप्त कलकत्ता कार्पोरेशन के मेयर बने तो उन्होंने सुभाषचन्द्र बोस को कार्पोरेशन का उच्च अधिकारी बना दिया। अंग्रेज सरकार ने एक अंग्रेज की हत्या के झूठे आरोप में इन्हें मांडले जेल में डाल दिया। ये 1929 और 1937 में कलकत्ता काँग्रेस कार्पोरेशन के मेयर बने और 1938-1939 में काँग्रेस के सभापति बने।

नेताजी ने काँग्रेस की नीतियों से मतभेद के कारण त्याग पत्र डे दिया और ‘फारवर्ड ब्लाक’ नामक राजनैतिक दल का गठन किया। इस दल का उद्देश्य पूर्ण स्वराज्य और हिन्दू-मुस्लिम एकता था। इनकी गतिविधियों से सरकार बौखला उठी और इन्हें जेल में डाल दिया। सन् 1940 में अस्वस्थ होने के कारण इन्हें जेल से रिहा क्र दिया गया, पर घर पर नजरबन्द कर दिया गया। 1941 में अंग्रेज सिपाहियों को चकमा देकर भाग जाने में सफल हो गए। ये सबसे पहले अफगानिस्तान पहुँचे और फिर जर्मनी गए। वहां हिटलर ने इनका स्वागत किया। जर्मन रेडियों ने सुभाषचन्द्र बोस ने स्वाधीनता का संदेश दिया। 1942 में ये जापान चले गए और वहाँ आजाद हिन्द फौज बनाई। ये देश को आजाद कराने के लिए बर्मा पहुँचे। इम्फाल में अंगेजी सेनाओं से लोहा लिया। इनके सैनिकों में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी और ये बराबर संघर्ष करते रहे। 1945 में जापान द्वारा हथियार डालने पर आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को गिरफ्तार लिया गया। 23 अगस्त 1945 को जापान के टोकियों रेडियों द्वारा विमान दुर्घटना में सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु का समाचार प्रसारित किया गया। परन्तु आज पचास साल के बाद भी उनकी मृत्यु का मामला रहस्यपूर्ण बना हुआ है।

सुभाष चन्द्र बोस का नाम स्वतन्त्रता सेनानियों में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता रहेगा। उनके द्वारा दिया गया, ‘जय हिन्द’ का नारा आज हमारा राष्ट्रिय नारा है। जो 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से पूरे देश में गूंजता है। ध्वजारोहण कार्यक्रम का समापन ‘जयहिन्द’ के उदघोष से होता है।

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